रामदेवजीः-
यह पंचपीरों में से एक है।
इनका जन्म उडूकासमेर गाँव शिव तहसिल बाड़मेर में हुआ था। इनको रूणिचा रा धणी, विष्णु का अवतार, पीरों का पीर और हिन्दु
इन्हें कृष्ण का अवतार और मुसलमान इन्हें रामसा पीर आदि नामों से पुकारते हैं।इनकी
माता का नाम मैणा दे तथा पिता का नाम अजमाल था। और इनकी पत्नी का नाम नेतलदे था।
तथा इनके गुरू का नाम बालिनाथ था। यह एकमात्र लोकदेवता थे
जिन्होनें जीवित समाधि ली। ओर ये कवी भी थे। जिन्होंने ‘चैबिस बाणियाँ’ पुस्तक की रचना कर उसमें
अपने उपदेश लिखें।एकमात्र लोकदेवता जो साम्प्रदायिक सद्भावना के लिए जाने जाते
हैं। इनका मन्दिर देवरा कहलाता हैं। ये मुर्ती पुजा के विरोधी
थे। इसलिए आज भी इनके ‘पगल्यों’ कि पुजा कि जाती हैं। लोक
देवताओें में इनका सबसे लम्बा गीत हैं। इनकी ध्वजा को नेजा कहते हैं। जो पाँच रंग
की होती हैं। इनके पुजारी मेघवाल जाती के होते हैं। जिन्हें रिखियाँ कहते हैं।
इन्होंने मेघवाल जाति की डालिबाई को अपनी धर्म बहन बनाया। और रामदेवजी ने कामड़िया
पंथ की स्थापना की। इनका मुख्य मंदिर रामदेवरा (जैसलमेर) में है, जहाँ पर भाद्रपद शुक्ल दूज
से एकादशी तक मेला लगता है। और छोटा रामदेवरा का मन्दिर गुजरात में हैं। इनका एक
ओर प्रसिद्व मन्दिर नवलगढ़ शेखावाटी में हैं।
गोगाजीः-
राजस्थान के पंच पीरों में
से एक पीर गोगाजी है। इन्हें गौरक्षक देवता, साँपों के देवता और हिन्दू
इन्हें नागराज तथा मुसलमान इन्हें गोगा पीर कहते हैं। इनका जन्म ददरेववा गाँव चुरू
में हुआ था। इनके गुरू का नाम गोरखनाथ था। गोगाजी की सवारी नीली घोड़ी थी जिसे गोगा
बाप्पा कहते हैं। गोगाजी के मुस्लिम पुजारियों को चायल कहते हैं। इनका थान खेजड़ी
वृ़क्ष के निचे होता हैं। ये मोहम्मद गजनबी से गौरक्षार्थ के लिए लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त
हो गये। इनका सिर ददरेवा चुरू में गिरा था अतः वह स्थान शिर्षमेढ़ी कहलाता
हैं और धड़. गोगामेड़ी नोहर (हनुमानगढ़) में गिरा इसलिए वह स्थान धुरमेड़ी कहलाता
हैं।गोगामेड़ी में मन्दिर का निर्माण मकबरेनुमा आकृति में फिरोज शाह तुगलक ने
करवाया जिस पर बिस्मिल्लाह अंकित हैं। इसका वर्तमान स्वरूप गंगासिंह ने
दिया। गोगामेड़ी पर भाद्रपद कृष्ण नवमी को मेला भरता हैं। तथा दूसरा मेला गोगाजी की
ओल्ड़ी (खिलोंरिया की ढाणी) सांचोर-जालौर में भरता हैं।
हड़बूजीः-
हड़बूजी पाँच पिरों में से
एक हैं। ये रामदेवजी के मौसेरे भाई हैं। रामदेवजी की प्ररेणा से इन्होंने बालिनाथ
जी को अपना गुरू बनाया। ये एक अच्छे शकुनशास्त्र के ज्ञाता, सन्न्यासी व योद्वा थे।
इनका मुख्य पुजा स्थल बेंगटी (फलौदी-जोधपुर) में हैं। जहाँ इनके मंदिर में इनकी
गाड़ी की पुजा की जाती हैं।
मांगलिया
मेहाजीः-
यह पाँच पीरों में से एक
हैं। इनका मुख्य मन्दिर बापणी (जोधपुर) में हैं। जहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्ण
अष्टमी (कृष्ण जन्माष्टमी) को मेला भरता हैं। इनके घोड़े का नाम किरड़ा काबरा हैं।
पाबूजीः-
ये भी पाँच पीरों में से एक
है। इनको लक्ष्मण का अवतार, ऊँटों
का देवता, प्लेग
रक्षक का देवता, गौरक्षक
का देवता आदी नामों से जाना जाता हैं। इनका जन्म कोलू गाँव
(फलौदी-जोधपुर) में हुआ। इनकी घोड़ी का नाम केशर कालमी था। मारवाड़ में सर्वप्रथम
ऊँट लाने का श्रेय इन्हीं को जाता हैं। यह राईका जाति के लोकदेवता कहलाते हैं।
पाबूजी ने अपने बहनोई जीजराव खींची से गायों को छुड़ातें बलिदान दे दिया। इनका पुजा
स्थल कोलू गाँव में हैं। जहाँ प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को मेला भरता हैं।
तेजाजीः-
इनको धौलिया पीर, साँपों का देवता, काला और बाला का देवता, कृषि कार्यों का उपकारण
देवता आदी नामों से जाना जाता हैं। ये राजस्थान के सर्वाधिक लोकप्रिय देवता हैं।
इनका जन्म नागौर के खड़नाल गाँव में हुआ। इनके पिता का नाम ताहड़ जी तथा माता का नाम
राजकुवंर और पत्नी का नाम पैमल था। इनकी घोड़ी को लीलण कहते थें। इनके पुजारी घोड़ला
कहलाते हैं। इनकी मृत्यु सुरसुरा गाँव अजमेर में नाग के डसने के कारण हुई। सुरसुरा
अजमेर में तेजाजी धाम हैं। बाँसी दूगारी (बूंदी) में इनका पवित तीर्थ स्थल हैं।
तेजाजी ने अपनी पत्नी पैमल की सहेली लाछा गुजरी की गायों के लिए युद्व किया था। परबतसर नागौर में इनका
प्रसिद्व मेला भाद्रपद शुक्ल दशमी को भरता हैं
नोटः- तेजाजी राजस्थान के पंचपीर नहीं हैं।
मल्लीनाथजीः-
इन्होंने लूनी नदी के तट पर
तिलवाड़ा में समाधि लि। जहाँ प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी
तक पशु मेला भरता हैं। जो राजस्थान का सबसे पुराना पशु मेला हैं। इन्हीं के नाम पर
बाड़मेर क्षेत्र का नाम मालाणी क्षेत्र पड़ा।
तल्लीनाथ जीः-
राजस्थान के एकमात्र
लोकदेवता जिन्होंने वृक्ष काटने पर रोक लगाई थी। इनका वास्तविक नाम गांगदेव राठौड़
हैं, यह
जालौर क्षेत्र के लोकदेवता हैं। जिनका जालौर के पाँचोटा गाँव में पंचमुखी पहाड़ी पर
पूजा स्थल हैं।
झूँझार जीः-
इनका जन्म इमलोहा
(नीमकाथाना-सीकर) में हुआ। स्यालोदड़ा गाँव में इनका पाँच स्तम्भ का मन्दिर हैं। जहाँ
प्रतिवर्ष रामनवमी को मेला भरता हैं।
देवनारायण
जीः-
गुर्जर जाती इन्हें विष्णु का अवतार मानती हैं। और
इन्हें आयुर्वेद का ज्ञाता भी कहते हैं। इनके बचपन का नाम उदयसिंह था। इनका जन्म
मालासेरी गाँव (आसिन्द-भीलवाड़ा) में हुआ। इनका जन्म पिता सवाईभोज तथा माता सेडू
खटाणी के घर हुआ। इनका मुख्य मंदिर आसिंद में खारी नदी के तट पर हैं। जहाँ पर इनकी
मुर्ती की जगह ईंटों की पुजा नीम के पत्तियों की जाती हैं। तथा छाछ राबड़ी का
प्रसाद चढ़ाते हैं। इनका दूसरा मंदिर देवधाम जोधपुरिया (निवाई-टोंक) में मांसी बांडी तथा
खारी नदी के संगम पर हैं। जहाँ पर प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को मेला भरता
हैं। राजस्थान की सबसे पुरानी तथा सबसे छोटी फड़ देवनारायण जी की हैं। 1992 में भारतीय डाक विभाग
द्वारा इनकी फड़े पर 5 रूपयें
का डाक टिकट जारी किया गया था। इनकी फड़ पढ़ते समय इनके भोंपे जंतर वाद्य यंत्र का
प्रयोग करते हैं। इनको राज्य क्रांति के जनक भी कहते हैं।
रूपनाथ जीः-
इनका जन्म कोलू गाँव जोधपुर
में हुआ। ये पाबूजी के भतीजे हैं। राजस्थान में कोलूमण्ड जोधपुर में प्रमुख मंदिर
हैं। हिमाचल प्रदेश में इनकी पुजा बालकनाथ के रूप में की जाती हैं
इलोजीः-
हिरण्यकश्यप की बहिन होलिका
के होने वाले पति थे, जिन्हें
मारवाड़ क्षेत्र में छेड़छाड़ के लोकदेवता के रूप में पूजा जाता हैं। ये कुँवारे ही
थे परन्तु महिलाऐं अच्छे पति तथा पुरूष अच्छी पत्नी प्राप्त करने के लिए इनकी पुजा
करते हैं।
हरिराम जीः-
इनका जन्म झोरड़ा गाँव में
हुआ। इनकी मुर्ती की जगह साँप की बांबी एवं बाबा के प्रतीक के रूप में इनके चरण
कमल की पूजा की जाती हैं।
1. ग्वालों के देवता देवबाबा
को कहते हैं।
2. भूमी के रक्षक देवता भोमिया
जी को कहते हैं।
3. बरसात के देवता मामादेव को
कहते है जिन्हे भैंस की बली दी जाती हैं
4. जाट समाज के देवता बिग्गा
जी को कहते हैं।
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