राजस्थान की नदियां
राजस्थान की अपवाह प्रणाली
को तिन भागों में बांटा गया हैं। अ. अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ ब. बंगाल की
खाड़ी में गिरने वाली नदियाँ स. अन्तः प्रवाह प्रणाली वाली नदियाँ
राजस्थान में अरब सागर की ओर बहने वाली नदियाँः-
माही नदी
इसका उद्गम मध्य प्रदेश के
धार जिले की अमरोरू पहाड़ी के सरदारपुरा के निकट मेहद झील से होता हैं। इस नदी का
राजस्थान में प्रवेश खंादु गाँव (बाँसवाड़ा) में होता हैं। इस नदी को आदिवासियों की
गंगा/ बागड़ की गंगा/काँठल की गंगा/ दक्षिणी राजस्थान की स्वर्ण रेखा आदि नामों से
जाना जाता हैं। यह नदी कर्क रेखा को दो बार काटती हैं। “सुजलाम-सुुफलाम क्रांति“ का सम्बन्ध माही नदी से हैं। इस नदी पर एक
त्रिवेणी संगम सोम, माही, एवं जाखम का बेणेश्वर
(डूँगरपुर) में स्थित हैं। इस नदी की कुल लम्बाई 576 किमी. हैं। तथा राजस्थान
में 171 किमी. हैं। यह नदी डूँगरपुर व बाँसवाड़ा की सीमा का निर्धारण कर
दोनों को अलग करती हैं। बाँसवाड़ा में इस नदी पर माही बाँध बना हुआ हैं। जो
राजस्थान का सबसे लम्बा बाँध हैं। जिसकी लम्बाई 3109 मीटर हैं। तथा इस नदी पर
गुजरात में एक बाँध बना हुआ हैं। जिसकों काड़ना बाँध कहते हैं।
लुनी नदी
इस नदी का उद्गम पुष्कर के
पास नाग पहाड़ से होता हैं। इस नदी का प्राचीन नाम लवणवती हैं। इस नदी को मीठी-खारी, मरूस्थल की गंगा तथा
पश्चिमी राजस्थान की सबसे लम्बी नदी आदि नामों से जाना जाता हैं। कालीदास जी ने इस
नदी को अन्तः सलिला कहा हैं। इस जल बालोतरा-बाड़मेर तक मीठा तथा बाद में खारा होता
हैं। इसका प्रवाह क्षैत्र गोड़वाड़ प्रदेश कहलाता हैं। इस नदी की कुल लम्बाई 465 किमी. हैं, जिसमें से राजस्थान में 330 किमी. हैं।
जोजड़ी नदी
यह लुनी की एकमात्र सहायक
नदी है जो दाँए किनारे से आकर मिलती हैं। तथा जिसका उद्गम अरावली की पहाड़ियों से
नहीं होता हैं।
साबरमती
राजस्थान की एकमात्र नदी
जिसका उद्गम राजस्थान से होता हैं परन्तु इसका महत्व गुजरात के लिए होता हैं। इसकी
कुल लम्बाई 416 किमी. है। जिमसें से राजस्थान में इसकी लम्बाई कुल 45 किमी. हैं।
नोटः- पश्चिमी बनास, जाखम, जवाई नदी, सूकड़ी, सागी, एवं मीठड़ी आदि नदियाँ भी अरब
सागर में जाकर गीरती हैं।
राजस्थान में बंगाल की खाड़ी की ओर बहने वाली
नदियाँ:-
चम्बल नदी
इसका उद्गम मध्यप्रदेश के
इन्दौर जिले के महु के निकट जानापाव पहाड़ी से होता हैं। इस नदी को चर्मण्वती
नदी/राजस्थान की कामधेनु/बारहमासी नदी/नित्यवाही नदी आदि नामों से जाना जाता हैं।
यह राजस्था के छः जिलों चितौड़गढ, कोटा, बुँदी, सवाईमाधोपुर, करौली एवं धौलपुर से गुजरती
हैं। एह एक मात्र नदी है जो राजस्थान एवं मध्यप्रदेश के बीच में अन्तर्राज्यीय
सीमा बनाती हैं। विश्व की एकमात्र नदी जिसके 100 किमी. के दायरे में तीन
बाँध बने हुये हैं। और तीनों पर ही जल विधुत उत्पादन किया जाता हैं। राजस्थान में
सर्वाधिक अवनलिका अपरदन चम्बल नदी से होता हैं। इकको प्रवाह प्रणाली वृक्षाकार हैं
जिसका बहाव दक्षिण से उत्तर की ओर हैं। यह राज्य की बहाव क्षैत्र की दृष्टि से
सबसे लम्बी नदी हैं। इस नदी की कुल लम्बाई 966 किमी. हैं। तथा राजस्थान
में इसकी लम्बाई 135 किमी. हैं। यह नदी 241 किमी. की अन्तर्राज्यीय
सीमा बनाती हैं।
बाणगंगा नदी
इसे अर्जन की गंगा व ताला
नदी भी कहते हैं। इसके किनारे बैराठ सभ्यता विकसित हैं। यह राजस्थान की दूसरी नदी
हैं जो अपना जल सीधा यमुना में डालती हैं। जिसकी कुल लम्बाई 380 किमी. हैं। पार्वती नदीः- इसका उद्गम
मध्यप्रदेश के सेहोर क्षैत्र से होता हैं। इसका राजस्थान में प्रवेश करयाहट
(बांरा) में होता हैं। यह पालिया (कोटा) में चम्बल नदी में मिल जाती
हैं।
बनास
इस नदी का उद्गम खमनोर की
पहाड़ियों (कुम्भलगढ़) से होता हैं।इसे ‘वर्णाशा नदी, वशिष्टी नदी व वन की आशा
आदि नामों से जाना जाता हैं। यह राजस्थान में पूर्ण बहाव की दृष्टि से सबसे लम्बी
नदी हैं। जिसकी कुल लम्बाई 480 किमी. हैं। इस नदी का जल ग्रहण क्षेत्र सर्वाधिक हैं। इस
नदी पर तीन त्रिवेणी संगम हैं। 1. बींगोद (भिलवाड़ा) में बनास, मेनाल, एवं बेड़च में मध्य बनता
हैं। 2. देवली (टोंक) में बीसलपुर बाँध के निकट डाई, खारी एवं बनास के मध्य बनता
हैं। 3. रामेश्वरम (सवाईमाधोपुर) में चम्बल, सीप एवं बनास के मध्य बनता
हैं। यह नदी राजसमन्द, चितौड़गढ़, भीलवाड़ा, अजमेर, टोंक एवं सवाईमाधोपुर से
होकर गुजरती हैं। अन्त में यह नदी रामेश्वरम (सवाईमाधोपुर) मे चम्बल नदी में जाकर
मिल जाती हैं।
बेड़च नदी
इसका उद्गम गोगुन्दा की
पहाड़ियों से होता हैं। इस नदी को उदयसागर झील से पहले आयड़ नदी तो बाद में बेड़च नदी
कहते हैं। इसके किनारे आहड़ सभ्यता विकसित हुई हैं। इस नदी की कुल लम्बाई 190 किमी. हैं।
आहु नदी
इस नदी का उद्गम सुसनेर
(मध्यप्रदेश) में होता हैं। तथा इसका राजस्थान में प्रवेश नन्दपुर गाँव (झालावाड़)
में होता हैं। यह गागरोन के किले के पास में यह कालिसिंध में जाकर मिल जाती हैं।
कालिसिंध नदी
इस नदी का उद्गम देवास
(मध्यप्रदेश) के बागली गाँव की पहाड़ी से होता हैं। तथा इसका राजस्थान में प्रवेश
रायपुर गाँव (झालावाड़) में होता हैं। तथा यह नानेरा (कोटा) में आकर चम्बल नदी में
मिल जाती हैं।
परवन नदी
इस नदी का उद्गम मध्यप्रदेश
के मालवा के पठार से होता हैं। इसका राजस्थान में प्रवेश खरीबोर गाँव (झालावाड़)
में होता हैं। यह रामगढ़-कोटा में आकर कालिसिंध नदी में मिल जाती हैं। इसी नदी पर
बांरा जिले में परवन परियोजना शुरू की गई हैं।
नोटः- खारी, डाई, कोठारी, गम्भीरी आदि नदियां भी बंगाल की
खाड़ी में जाकर गिरती हैं।
राजस्थान में अन्तः प्रवाह की नदियाँः-
घग्घर नदी
इस नदी का उद्गम हिमाचल
प्रदेश की शिवालिक पहाड़ी (कालका माता के मन्दिर) से होता हैं। यह नदी राजस्थान में
प्रवेश हनुमानगढ़ के टिब्बी नामक स्थान से होती हैं। इस नदी को सरस्वती नदी, नट नदी, द्वेषवती नदी, मृत नदी, सोतर नदी एवं लेटी हुई नदी
भी कहते हैं। यह आन्तरिक प्रवाह प्रणाली की दृष्टि से सबसे लम्बी नदी हैं। इसकी
कुल लम्बाई 465 किमी. हैं। इस नदी के मुहाने पर कालीबंगा सभ्यता विकसित हैं। इस
नदी का उल्लेख ऋग्वेद में भी हैं। राजस्थान के हनुमानगढ़ जंक्शन का धरातल स्थल उसके
पास की नदी के पेटे के स्तर से भी नीचे हैं। इस नदी को राजस्थान का शोक भी कहते
हैं। राजस्थान में इसके बहाव क्षेत्र को नाली/पाट कहते हैं। इसका अन्तिम स्थान
फोर्ट अब्बास (पाकिस्तान) तक हैं। पाकिस्तान में इसके बहाव क्षेत्र को हकरा कहते
हैं।
कांतली नदी
इस का उद्गम खण्डेला की
पहाड़ियों से होता हैं। इस नदी को मौसमी नदी भी कहते हैं। यह राजस्थान में पुर्ण बहाव की
दृष्टि से आन्तरिक पवाह की सबसे लम्बे नदी हैं। एवं यह शेखावाटी क्षैत्र की भी
सबसे बड़ी नदी हैं। यह नदी सीकर एवं झुन्झुनू में बहती हैं। तथा इसका बहाव क्षेत्र
तोरावाटी प्रदेश कहलाता हैं। इस नदी की कुल लम्बाई 100 किमी. हैं। इस नदी किनारे
गणेश्वर सभ्यता विकसित हैं। यह झुन्झुनू को दो भागों में बांटती हैं। अन्त में यह
नदी चुरू कि सीमा से पहले ही समाप्त हो जाती हैं। चूरू एवं बीकानेर राजस्थान के दो
ऐसे जिले हैं। जिनमें कोई नदी नहीं हैं।
रूपारेल नदी
इसका उद्गम उदयनाथ की पहाड़ी
थानागाजी (अलवर) में होता हैं। इस नदी को लसवारी नदी तथा स्थानीय भाषा में वराह
नदी भी कहते हैं। यह सीकरी बाँध (भरतपुर) में विलुप्त हो जाती हैं।
नोटः- मेन्था, कांकणी, रूपनगढ़ एवं साबी आदि नदियाँ भी
अन्त प्रवाह प्रणाली की नदियाँ हैं।
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